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पिछले कुछ वर्षों में, प्रत्येक गांव में 5 किलोमीटर के दायरे में कम से कम एक बैंकिंग आउटलेट, शाखा या व्यवसाय प्रतिनिधिका होना सुनिश्चित करके बैंकिंग सेवाओं तक आसान पहुंच सुदृढ़ हुई है जिससे देश भर के मैप किए गए आबादी वाले 99.97% गांवों का कवरेज हो सका है।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल बैंकों को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक माना जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अतिरिक्त अन्य सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय रिज़र्व बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत सहकारी बैंकों को भी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए लाइसेंस प्रदान करता है।
बैंकिंग क्षेत्र के अंदर, निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को ऑटोमैटिक रूट के माध्यम से 49% तक और इससे अधिक सरकारी अनुमोदन मार्ग के माध्यम से 74% तक की अनुमति है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी अनुमोदन मार्ग के माध्यम से 20% तक एफडीआई की अनुमति है।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक –
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी), लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक शामिल हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का गठन भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 और बैंककारी कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970/बैंककारी कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 के तहत हुआ है।
विदेशी बैंक वह बैंक है जिसका मुख्यालय भारत के बाहर होता है लेकिन भारत में किसी भी स्थान पर एक निजी संस्थान के रूप में वह अपना कार्यालय परिचालित करता है। ऐसे बैंकों पर भारतीय रिजर्व बैंक के विनियमों के साथ-साथ भारत के बाहर स्थित मूल संगठन द्वारा निर्धारित नियम के तहत काम करने का दायित्व है।
निजी क्षेत्र के बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत परिचालन करने के लिए लाइसेंस प्राप्त बैंकिंग कंपनियां हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) कृषि और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पर्याप्त संस्थागत ऋण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत स्थापित बैंक हैं। आरआरबी के परिचालन का क्षेत्र केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्र तक सीमित है। आरआरबी का स्वामित्व भारत सरकार, राज्य सरकार और प्रायोजक बैंकों के पास संयुक्त रूप से होता है।
लघु वित्त बैंक (एसएफबी) को बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त है और मुख्य रूप से लघु व्यावसायिक इकाइयों, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्यमों और अन्य वंचित वर्गों सहित गैर-सेवित और अल्पसेवित वर्गों के लिए बुनियादी बैंकिंग गतिविधियों को आरंभ करके वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बनाया गया है।
भुगतान बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त पब्लिक लिमिटेड कंपनियां हैं, जिसमें विशिष्ट लाइसेंसिंग शर्तें हैं जो इसकी गतिविधियों को मुख्य रूप से मांग जमा की स्वीकृति और भुगतान और प्रेषण सेवाओं के प्रावधान तक सीमित करती हैं।
सहकारी बैंक –
सहकारी बैंकों से तात्पर्य है एक राज्य सहकारी बैंक, केंद्रीय सहकारी बैंक और प्राथमिक सहकारी बैंक।प्राथमिक सहकारी बैंकों को शहरी सहकारी बैंकों के रूप में भी जाना जाता है और पिछले कुछ वर्षों में, इसने संख्या, आकार और व्यवसाय में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है।राज्य सहकारी बैंक प्रत्येक राज्य में उच्चतम स्तर के सहकारी बैंक होते हैं। वे धन जुटाते हैं और विभिन्न क्षेत्रों के बीच उनके उचित आबंटन में सहायता करते हैं। व्यक्तिगत उधारकर्ता केंद्रीय सहकारी बैंकों और प्राथमिक क्रेडिट समितियों के माध्यम से राज्य सहकारी बैंकों से धन प्राप्त करते हैं।
सहकारी बैंक संबंधित राज्य के राज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम या बहु राज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत हैं औरभारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसे लाइसेंस दिया जाता है और इसके बैंकिंग व्यवसाय को विनियमित किया जाता है। ये बैंक वित्तीय संस्थान हैं जो इसके सदस्यों से संबंधित हैं, जो बैंक के मालिक के साथ-साथ ग्राहक भी हैं। सहकारी बैंक मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों, कुछ लघु उद्योगों और स्व-नियोजित श्रमिकों को सहायता प्रदान करते हैं।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के अतिरिक्त, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां भी देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान–
वित्तीय संस्थान भारतीय वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को मध्यम से दीर्घकालिक वित्त प्रदान करते हैं। इन संस्थानों की स्थापना निर्यात, आयात, ग्रामीण, आवास और लघु उद्योगों जैसे विशेष क्षेत्रों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए की गई है। ये संस्थान इन क्षेत्रों को ऋण देने और इनके सामने आने वाली चुनौतियों/मुद्दों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत में भारतीय निर्यात-आयात बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, राष्ट्रीय आवास बैंक और राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंकअखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के रूप में कार्य कर रहे हैं।
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) –
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां देश के छोटे और मध्यम औद्योगिक क्षेत्र में उपभोग मांग को बनाए रखने के साथ-साथ पूंजी निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
एनबीएफसी की पहुंच और अंतिम छोर तक लाभ पहुंचाने की विशेषता ने उन्हें समाज के बैंकिंग से वंचित और गैर-सेवित वर्गों को औपचारिक वित्तीय सेवाएं प्रदान करने में अत्याधुनिक तकनीक के साथ तत्परता और नवोन्मेष के साथ सशक्त बनाया है।
एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत एक कंपनी है जो ऋण और अग्रिम, सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी शेयरों / स्टॉक / बॉन्ड / डिबेंचर / प्रतिभूतियों के अधिग्रहण आदि के व्यवसाय से संबंधित है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित होती है।
एनबीएफसी उधार देते और निवेश करते हैं और इसलिए उनकी गतिविधियां बैंकों के समान हैं। हालांकि कुछ अंतर हैं जो निम्नलिखित हैं :
• एनबीएफसी मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकते हैं;
• एनबीएफसी भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं और स्वयं के लिए आहरित चेक जारी नहीं कर सकते हैं;
• बैंकों के विपरीत, एनबीएफसी के जमाकर्ताओं के लिए जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम की जमा बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं है। एनबीएफसी को आस्ति/देयता संरचनाओं, प्रणालीगत महत्व और उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। हालांकि, दिनांक 01.10.2022 से, आकार, गतिविधि और कथित जोखिम के आधार पर एनबीएफसी केलिए विनियामक संरचना में चार स्तर होते हैं।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्य-निष्पादन मानदंड (31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार)
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पिछले कुछ वर्षों में, प्रत्येक गांव में 5 किलोमीटर के दायरे में कम से कम एक बैंकिंग आउटलेट, शाखा या व्यवसाय प्रतिनिधिका होना सुनिश्चित करके बैंकिंग सेवाओं तक आसान पहुंच सुदृढ़ हुई है जिससे देश भर के मैप किए गए आबादी वाले 99.97% गांवों का कवरेज हो सका है।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल बैंकों को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक माना जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अतिरिक्त अन्य सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय रिज़र्व बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत सहकारी बैंकों को भी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए लाइसेंस प्रदान करता है।
बैंकिंग क्षेत्र के अंदर, निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को ऑटोमैटिक रूट के माध्यम से 49% तक और इससे अधिक सरकारी अनुमोदन मार्ग के माध्यम से 74% तक की अनुमति है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी अनुमोदन मार्ग के माध्यम से 20% तक एफडीआई की अनुमति है।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक –
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी), लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक शामिल हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का गठन भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 और बैंककारी कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970/बैंककारी कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 के तहत हुआ है।
विदेशी बैंक वह बैंक है जिसका मुख्यालय भारत के बाहर होता है लेकिन भारत में किसी भी स्थान पर एक निजी संस्थान के रूप में वह अपना कार्यालय परिचालित करता है। ऐसे बैंकों पर भारतीय रिजर्व बैंक के विनियमों के साथ-साथ भारत के बाहर स्थित मूल संगठन द्वारा निर्धारित नियम के तहत काम करने का दायित्व है।
निजी क्षेत्र के बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत परिचालन करने के लिए लाइसेंस प्राप्त बैंकिंग कंपनियां हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) कृषि और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पर्याप्त संस्थागत ऋण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत स्थापित बैंक हैं। आरआरबी के परिचालन का क्षेत्र केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्र तक सीमित है। आरआरबी का स्वामित्व भारत सरकार, राज्य सरकार और प्रायोजक बैंकों के पास संयुक्त रूप से होता है।
लघु वित्त बैंक (एसएफबी) को बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त है और मुख्य रूप से लघु व्यावसायिक इकाइयों, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्यमों और अन्य वंचित वर्गों सहित गैर-सेवित और अल्पसेवित वर्गों के लिए बुनियादी बैंकिंग गतिविधियों को आरंभ करके वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बनाया गया है।
भुगतान बैंक बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त पब्लिक लिमिटेड कंपनियां हैं, जिसमें विशिष्ट लाइसेंसिंग शर्तें हैं जो इसकी गतिविधियों को मुख्य रूप से मांग जमा की स्वीकृति और भुगतान और प्रेषण सेवाओं के प्रावधान तक सीमित करती हैं।
सहकारी बैंक –
सहकारी बैंकों से तात्पर्य है एक राज्य सहकारी बैंक, केंद्रीय सहकारी बैंक और प्राथमिक सहकारी बैंक।प्राथमिक सहकारी बैंकों को शहरी सहकारी बैंकों के रूप में भी जाना जाता है और पिछले कुछ वर्षों में, इसने संख्या, आकार और व्यवसाय में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है।राज्य सहकारी बैंक प्रत्येक राज्य में उच्चतम स्तर के सहकारी बैंक होते हैं। वे धन जुटाते हैं और विभिन्न क्षेत्रों के बीच उनके उचित आबंटन में सहायता करते हैं। व्यक्तिगत उधारकर्ता केंद्रीय सहकारी बैंकों और प्राथमिक क्रेडिट समितियों के माध्यम से राज्य सहकारी बैंकों से धन प्राप्त करते हैं।
सहकारी बैंक संबंधित राज्य के राज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम या बहु राज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत हैं औरभारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसे लाइसेंस दिया जाता है और इसके बैंकिंग व्यवसाय को विनियमित किया जाता है। ये बैंक वित्तीय संस्थान हैं जो इसके सदस्यों से संबंधित हैं, जो बैंक के मालिक के साथ-साथ ग्राहक भी हैं। सहकारी बैंक मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों, कुछ लघु उद्योगों और स्व-नियोजित श्रमिकों को सहायता प्रदान करते हैं।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के अतिरिक्त, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां भी देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान–
वित्तीय संस्थान भारतीय वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को मध्यम से दीर्घकालिक वित्त प्रदान करते हैं। इन संस्थानों की स्थापना निर्यात, आयात, ग्रामीण, आवास और लघु उद्योगों जैसे विशेष क्षेत्रों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए की गई है। ये संस्थान इन क्षेत्रों को ऋण देने और इनके सामने आने वाली चुनौतियों/मुद्दों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत में भारतीय निर्यात-आयात बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, राष्ट्रीय आवास बैंक और राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंकअखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के रूप में कार्य कर रहे हैं।
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) –
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां देश के छोटे और मध्यम औद्योगिक क्षेत्र में उपभोग मांग को बनाए रखने के साथ-साथ पूंजी निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
एनबीएफसी की पहुंच और अंतिम छोर तक लाभ पहुंचाने की विशेषता ने उन्हें समाज के बैंकिंग से वंचित और गैर-सेवित वर्गों को औपचारिक वित्तीय सेवाएं प्रदान करने में अत्याधुनिक तकनीक के साथ तत्परता और नवोन्मेष के साथ सशक्त बनाया है।
एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत एक कंपनी है जो ऋण और अग्रिम, सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी शेयरों / स्टॉक / बॉन्ड / डिबेंचर / प्रतिभूतियों के अधिग्रहण आदि के व्यवसाय से संबंधित है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित होती है।
एनबीएफसी उधार देते और निवेश करते हैं और इसलिए उनकी गतिविधियां बैंकों के समान हैं। हालांकि कुछ अंतर हैं जो निम्नलिखित हैं :
• एनबीएफसी मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकते हैं;
• एनबीएफसी भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं और स्वयं के लिए आहरित चेक जारी नहीं कर सकते हैं;
• बैंकों के विपरीत, एनबीएफसी के जमाकर्ताओं के लिए जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम की जमा बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं है। एनबीएफसी को आस्ति/देयता संरचनाओं, प्रणालीगत महत्व और उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। हालांकि, दिनांक 01.10.2022 से, आकार, गतिविधि और कथित जोखिम के आधार पर एनबीएफसी केलिए विनियामक संरचना में चार स्तर होते हैं।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्य-निष्पादन मानदंड (31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार)